Puraanic contexts of words like Rituparna, Ritvija/preist, Ribhu, Rishabha, Rishi etc. are given here.

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References on Riddhi

Veda study on Ribhu

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Veda study on Rishi/seer



ऋतुकुल्या वायु ४५.१०६ ( महेन्द्र पर्वत से निर्गत नदियों में से एक )


ऋतुदान लक्ष्मीनारायण १.४८४.३२( सुपर्ण ऋषि की पत्नी पुरुहूता द्वारा पर्वकाल में पति से ऋतुदान की मांग, पर्वकाल में ऋतुदान की मांग पर विप्र व विप्रपत्नी के शाप से चाण्डाली होने का वृत्तान्त )


ऋतुध्वज ब्रह्मवैवर्त्त १.८.२३ ( एकादश रुद्रों में से एक ), द्र. ऋतध्वज


ऋतुपर्ण पद्म ५.३१ ( ऋतुपर्ण द्वारा ऋतम्भर राजा को राम नाम के माहात्म्य का कथन ), ब्रह्माण्ड २.३.६३.१७३ ( अयुतायु - पुत्र, सर्वकाम - पिता, भगीरथ / इक्ष्वाकु वंश, राजा नल को अक्ष विद्या देकर अश्व विद्या सीखना ), भागवत ९.९.१७ (वही), मत्स्य १२.४६ (अयुतायु - पुत्र, कल्माषपाद - पिता, सर्वकर्मा - पितामह, इक्ष्वाकु वंश ), वायु ८८.१७३ ( अयुतायु - पुत्र , सर्वकाम - पिता, भगीरथ / इक्ष्वाकु वंश, राजा नल को अक्ष विद्या देकर अश्वविद्या सीखना ), विष्णु ४.४.३७ ( वही), कथासरित् ९.६.३७७ ९ (नल - दमयन्ती की कथा : ऋतुपर्ण द्वारा नल को अक्ष विद्या सिखाना ) Rituparna


ऋत्विज गर्ग  १०.११ ( उग्रसेन के अश्वमेध यज्ञ के ऋत्विजों के नाम ), देवीभागवत  ३.१०.२१ (देवदत्त द्विज के पुत्रेष्टि यज्ञ में कल्पित ऋत्विजों के नाम ),  ११.२२.३१ ( प्राणाग्नि होत्र में इन्द्रिय रूपी ऋत्विजों का कथन ), पद्म  १.३४.१३ ( ब्रह्मा के यज्ञ में ऋत्विजों के नाम ),  १.३९.७७(पुरुष द्वारा सृष्टि रूपी यज्ञ हेतु ब्रह्मा, उद्गाता, सामग प्रभृति १६ ऋत्विजों की उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड  २.३.४७.४७ ( परशुराम के वाजिमेध में ऋत्विजों के नाम ), मत्स्य  १६७.७ ( ऋत्विजों की विष्णु देह से उत्पत्ति का कथन ), महाभारत उद्योग  १४१.३२(महाभारत रूपी यज्ञ में अभिमन्यु के उद्गाता, भीम के प्रस्तोता, युधिष्ठिर के ब्रह्मा तथा नकुल-सहदेव के शामित्र होने का कथन), शान्ति  ७९(ऋत्विज होने के लिए अपेक्षित गुण),  २८०.२७( ), अनुशासन  १५०.२९(प्राची, दक्षिण, प्रतीची व उत्तर दिशाओं में ७-७ ऋत्विज ऋषियों के नाम), आश्वमेधिक २०.२१(घ्राता, भक्षयिता, द्रष्टा, स्प्रष्टा, श्रोता, मन्ता व बोद्धा के सात परम ऋत्विज होने का श्लोक), विष्णुधर्मोत्तर  ३.९७.१ ( देव मूर्ति प्रतिष्ठा में यज्ञ के तुल्य १६ पौराणिक ऋत्विजों का कथन ), स्कन्द  ३.१.२३.२४(माहेश्वर यज्ञ के ऋत्विजों के नाम),  ५.१.२८.७७ ( चन्द्रमा के राजसूय यज्ञ के ऋत्विजों के नाम ),  ५.१.६३.२४० ( बलि राजा के यज्ञ के ऋत्विजों के नाम ),  ५.३.१९४.५४( श्री व विष्णु के विवाह रूपी यज्ञ के ऋत्विजों के नाम ),  ६.५.५ ( त्रिशंकु के यज्ञ के ऋत्विज ),  ६.१८०.३२ ( ब्रह्मा के पुष्कर स्थित यज्ञ में ऋत्विजों के नाम ),  ७.१.२३.९२ (ब्रह्मा के प्रभास क्षेत्र में स्थित यज्ञ के ऋत्विजों के नाम ), हरिवंश  ३.१०.५ ( ऋत्विजों की हरि के शरीर से उत्पत्ति का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण  १.४४०.९६ ( धर्मारण्य में धर्म के यज्ञ के ऋत्विजों के नाम ),  १.५०९.२३ ( ब्रह्मा के अग्निष्टोम यज्ञ के ऋत्विजों के नाम )  २.१०६.४७ ( उष्णालय देश के राजा दक्षजवंगर के वैष्णव होम के ऋत्विज ),  २.१२४.८ ( बालकृष्ण के यज्ञ के ऋत्विज ), २.२४६.२९ ( ऋत्विज के देवलोकेश होने का उल्लेख ),  २.२४८.२२ ( सोमयाग में ऋत्विजों के कर्मों का वर्णन ),  ३.३५.११२ ( बृहद्धर्म नृप के चातुर्मास यज्ञ में ऋत्विजों द्वारा प्राप्त दक्षिणाओं का वर्णन ),  ३.१४८.९३( सांवत्सरी दीक्षा में प्रतिमास ऋत्विजों हेतु भोजन द्रव्यों का विधान ), ४.८०.१२ ( राजा नागविक्रम के सर्वमेध यज्ञ के ऋत्विजों के नाम )

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ऋद्धि गरुड १.२१.३( सद्योजात शिव की ८ कलाओं में से एक - ॐ हां सद्योजातायैव कला ह्यष्टौ प्रकीर्त्तिताः ।। सिद्धिर्ऋद्धिर्धृतिर्लक्ष्मीर्मेधा कान्तिः स्वधा स्थितिः ।। ), २.३०.५७/२.४०.५७( मृतक की भुजाओं में ऋद्धि - वृद्धि देने का उल्लेख - ऋद्धिवृद्धी भुजौ द्वौ च चक्षुषोश्च कपर्दकौ । ), ब्रह्माण्ड २.३.८.४६ ( कुबेर - पत्नी, नलकूबर - माता -ऋद्ध्यां कुबेरोऽजनयद्विश्रुतं नलकूबरम् ॥ ), ३.४.३५.९४ ( ब्रह्मा की १० कलाओं में से एक - पुष्टिर्ऋद्धिः स्थितिर्मेधा कान्तिर्लक्ष्मीर्द्युतिर्धृतिः । जरा सिद्धिरिति प्रोक्ताः क्रीडन्ति ब्रह्मणः कलाः ॥ ), वायु ७०.४१ ( कुबेर - पत्नी, नलकूबर – माता - ऋद्ध्यां कुबेरोऽजनयद्विश्रुतं नलकूबरम्। ), विष्णुधर्मोत्तर १.१३५.४६ ( उर्वशी की ऋद्धि  से न्यग्रोध वृक्ष की उत्पत्ति का उल्लेख - रात्रिमेनां विवत्स्यामि न्यग्रोधेऽस्मिन्महाद्रुमे । उर्वश्या ऋद्धिरचिते वरवेश्मनि पार्थिवः ।। ), ३.५३.४ ( ऋद्धि की गणेश के वाम पार्श्व में स्थिति, स्वरूप - वामोत्संगगता कार्या ऋद्धिर्देवी वरप्रदा । देवपृष्ठगतं पाणिं द्विभुजायास्तु दक्षिणम् ।। ), ३.८२.८ ( लक्ष्मी के हाथ में शङ्ख के ऋद्धि का प्रतीक होने का उल्लेख - देव्याश्च मस्तके पद्मं तथा कार्यं मनोहरम् । सौभाग्यं तद्विजानीहि शङ्खमृद्धिं तथा परम्।। ), शिव ७.२.४.४५( यक्ष - पत्नी के रूप में ऋद्धि का उल्लेख - यक्षो यज्ञशिरोहर्ता ऋद्धिर्हिमगिरीन्द्रजा ॥ ), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२६( कुबेर के विष्णु व ऋद्धि के लक्ष्मी होने का उल्लेख - ऋद्धिस्त्वं च कुबेरोऽहं गौरी त्वं वरुणोऽस्म्यहम् । ), २.२१०.२७ ( श्री हरि का आलीस्मर राष्ट्र की ऋद्धीशा नगरी में आगमन व प्रजा को आशा त्याग का उपदेश - आलीस्मरं हरिः प्राप विमानं भूतलेऽनयन् । ऋद्धीशाया महोद्याने नृपालयस्य सन्निधौ ।।), ३.१११.२४ ( ऋद्धि दान से प्राकृत स्थल की प्राप्ति - गृहदः सत्यलोकं च ऋद्धिदः प्राकृतं स्थलम् ।)  Riddhi

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ऋभु अग्नि ३८०.४५ ( ऋभु का ऋतु से साम्य ), गरुड ३.५.३८(ऋभुगण का तीन पितरों से साम्य?), गर्ग ५.२०.३७ ( रोहिताचल पर समाधिस्थ ऋभु द्वारा कृष्ण दर्शन पर प्राण त्याग, कृष्ण चरणों से पुन: प्राकट्य, पूर्व शरीर का नदी रूप में परिणत होना ), नारद १.४९ ( ब्रह्मा - पुत्र, शिष्य निदाघ को भोजन व वाहन के माध्यम से अद्वैत की शिक्षा ), पद्म १.६.२७( प्रत्यूष वसु - पुत्र, देवल - भ्राता ), लिङ्ग १.३८.१४ ( ऋभु व सनत्कुमार का ब्रह्मा से प्राकट्य ), १.७०.१७०(ऋभु का क्रतु से तादात्म्य?, तुलनीय : ब्रह्माण्ड १.१.५.७९), वायु १.९.९८/९.१०६( ऋभु व सनत्कुमार के ऊर्ध्वरेतस व सबके पूर्वज होने का उल्लेख ), २४.७८( ऋभु व सनत्कुमार का ब्रह्मा से प्राकट्य, ऋभु व सनत्कुमार के ऊर्ध्वरेतस होने तथा शेष तीन सनकादि द्वारा प्रथम २ के त्याग का कथन ), २४.८३(सनत्कुमार का ऋभु से तादात्म्य?),१०१.३०/२.३९.३०( ऋभुओं इत्यादि की भुव: लोक में स्थिति का उल्लेख ), विष्णु २.१५.२ ( ब्रह्मा - पुत्र, शिष्य निदाघ को भोजन व वाहन के माध्यम से अद्वैत की शिक्षा ), ६.८.४३ ( ब्रह्मा द्वारा विष्णु पुराण का सर्वप्रथम ऋभु को वर्णन, ऋभु द्वारा प्रियव्रत को वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.१७६.१५( दक्ष यज्ञ में भृगु द्वारा दक्षिणाग्नि में आहुति से ऋभवों की उत्पत्ति, ऋभवों द्वारा रुद्र गणों से युद्ध ) Ribhu

 Veda study on Ribhu


ऋभुगण ब्रह्माण्ड २.३.१.१०७ ( सुधना - पुत्र ), भागवत ४.४.३३ ( दक्ष के यज्ञ की शिव के प्रमथ गणों से रक्षा के लिए भृगु द्वारा अग्नि में आहुति से ऋभवों की सृष्टि ), ६.७.२, ६.१०.१७ ( ऋभुगणों की इन्द्र की सभा में स्थिति , इन्द्र के साथ वृत्र से युद्ध ), ८.१३.४ ( वैवस्वत मन्वन्तर में एक देवगण ), मत्स्य ९.२४ ( चाक्षुष मन्वन्तर में एक देवगण ), वायु ६५.१०२ ( ऋषभ : सुधन्वा - पुत्र, रथकार , देव व ऋषि दोनों वर्गों में व्याप्ति ), १०१.३० ( ऋभुगण का भुव: लोक में वास ), शिव २.२.३०.२४ ( दक्ष के यज्ञ की शिव के प्रमथ गणों से रक्षा के लिए भृगु द्वारा अग्नि में आहुति से ऋभवों की सृष्टि )


ऋषङ्गु वामन ३९.१७ ( ऋषङ्गु ऋषि द्वारा पृथूदक तीर्थ की महिमा का कथन )


 ऋषभ देवीभागवत    ८.१४.१०  ( लोकालोक पर्वत पर ४ दिग्गजों में से एक ),   ब्रह्मवैवर्त्त    १.१७.४०  ( शङ्कर के कृष्ण की कलाओं का ऋषभ होने का उल्लेख ),  ब्रह्माण्ड    १.२.३६.१७  ( अङ्गिरा - पुत्र ऋषभ : स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ),  भागवत    १.१४.३१  ( कृष्ण का एक पुत्र ),    २.७.१०  ( नाभि व सुदेवी - पुत्र,   ऋषभ द्वारा जड योगचर्या का आश्रय ),   ५.४+ ( नाभि व मेरुदेवी - पुत्र,  विष्णु के अवतार,   जयन्ती - पति ,   ऋषभ द्वारा अजनाभ खण्ड का शासन,  भरत आदि १०० पुत्रों की प्राप्ति,  पुत्रों को उपदेश,   अवधूत वृत्ति का ग्रहण,  देह त्याग,   चरित्र महिमा ),    ५.५.१९( ऋषभ की निरुक्ति : अधर्म को पृष्ठ करने वाले ),    ५.१६.२६  ( मेरु के मूल में एक पर्वत का नाम ),   ५.१९.१६  ( भारतवर्ष का एक पर्वत ),  ५.२०.२२ ( क्रौंच द्वीप के निवासियों का एक वर्ण ),   ६.८.१८  ( ऋषभ से द्वन्द्व व भय से रक्षा की प्रार्थना ),   ६.१०.१९ ( वृत्रासुर का एक सेनानी,  इन्द्र से युद्ध ),    ६.१८.७  ( इन्द्र व शची के तीन पुत्रों में से एक,  जयन्त - भ्राता ),    ८.१३.२०  ( आयुष्मान् व अम्बुधारा - पुत्र,  भगवान का कलावतार ),    ९.२२.६  ( कुशाग्र - पुत्र,   सत्यहित - पिता,   दिवोदास वंश ),    १०.२२.३१  ( कृष्ण का एक गोप सखा,   कृष्ण द्वारा वृक्ष महिमा का कथन ),   ११.२.१५+ ( ऋषभ राजा के कवि,   हरि आदि ९ योगीश्वर पुत्रों का वृत्तान्त ),  वराह    ८०.९  ( मेरु की पश्चिम दिशा में शङ्खकूट व ऋषभ पर्वतों के बीच स्थित पुरुष स्थली की महिमा ),   वामन    ६.८९  (भरद्वाज - शिष्य,   पाशुपत सम्प्रदाय के प्रचारक ),  वायु    २१.३३  ( १५ वें ऋषभ नामक कल्प में ऋषभ स्वर की उत्पत्ति का कथन ),   २३.१४३  ( नवम द्वापर में शिव का अवतार  ,   पराशर आदि तीन पुत्रों के नाम ),   ३३.५०  ( नाभि व मरुदेवी - पुत्र,   भरत आदि १०० पुत्रों के पिता,  वंश वर्णन ),   ४४.१९ ( ऋषभा : केतुमाल वर्ष की एक नदी ),   ४९.११  ( प्लक्ष द्वीप के ७ पर्वतों में से एक,  सुमना उपनाम,   ऋषभ पर्वत पर वराह द्वारा हिरण्याक्ष का निग्रह ),    ४९.१४( ऋषभ वर्ष के दूसरे नाम क्षेमक का उल्लेख ),   ५९.१०० ( १३ मन्त्रकर्त्ता अङ्गिरस ऋषियों में से एक ),    ६५.१०२  ( सुधन्वा - पुत्र,   रथकार,   देव व ऋषि दोनों वर्गों में व्याप्ति ),  ६८.१५ ( दनु के मनुष्यधर्मा पुत्रों में से एक ),   ८७.३३  ( भद्राश्व वर्ष के निवासियों द्वारा ऋषभ स्वर में गायन  ? ),   ९९.२२३ ( कुशाग्र - पुत्र,  पुष्पवान - पिता,   कुरु वंश ),   विष्णु    २.१.२७  ( नाभि व मरुदेवी - पुत्र ऋषभ के संक्षिप्त चरित्र का वर्णन ),  शिव    ३.४.३५( नवम द्वापर में शिव - अवतार ऋषभ का चरित्र : मृत भद्रायु नृपपुत्र को जीवन दान आदि ),    ५.३४.२२  ( तृतीय उत्तम मन्वन्तर में देवों के गण का नाम  ? ),   स्कन्द    ३.३.१०+ ( पिङ्गला वेश्या व मन्दर ब्राह्मण द्वारा ऋषभ योगी की सेवा से जन्मान्तर में सत्कुल प्राप्ति की कथा ),   ५.१.७०.१  ( ऋषभ पर्वत की स्थिति का कथन : मेरु के दक्षिण में स्थिति आदि ),   ५.२.७३.२८  ( ऋषभ ऋषि द्वारा राजा वीरकेतु को करभ / उष्ट्र के पूर्व जन्म का वृत्तान्त बताना ),  हरिवंश    ३.३५.२०  ( यज्ञवराह द्वारा निर्मित ऋषभ पर्वत के स्वरूप का कथन ),   वा.रामायण    ४.४०.४४  ( सुग्रीव - प्रोक्त ऋषभ पर्वत महिमा : पूर्व दिशा में क्षीरसागर में स्थिति  ,   सुदर्शन सरोवर का स्थान ),    ४.४१.३९  ( सीता अन्वेषण प्रसंग में सुग्रीव द्वारा वानरों को दक्षिण दिशा में स्थित ऋषभ पर्वत की महिमा का वर्णन ),   ४.६५.५(ऋषभ वानर की गमन शक्ति का कथन ),   ६.२४.१५  ( ऋषभ की वानर सेना के दक्षिण पार्श्व में स्थिति ),    ६.४१.४०  ( ऋषभ द्वारा लङ्का के दक्षिण द्वार पर अङ्गद की सहायता ),   ६.७०.५५  ( ऋषभ द्वारा रावण - सेनानी महापार्श्व का वध ),    ६.१२८.५४  ( ऋषभ द्वारा राम अभिषेक हेतु दक्षिण समुद्र से जल लाना ),  लक्ष्मीनारायण    १.३८९  ( नाभि व मरुदेवी की विष्णु भक्ति से ऋषभ अवतार का जन्म,  ऋषभ के चरित्र का वर्णन ),    १.३८९.३८(ऋषभ के संदर्भ में आग्नीध्रीय शब्द का उल्लेख),   २.१४०.६४ ( ऋषभ संज्ञक प्रासाद के लक्षण ),  २.२१०.५० ( ऋषभ भक्त द्वारा बदरीवन में पर्णकुटी बनाने की इच्छा,  तनु ऋषि के उपदेश से आशा का त्याग करके मोक्ष प्राप्ति ),   २.२४०  ( योगी वीतिहोत्र द्वारा गुरु ऋषभ व सहस्र रूपधारी कृष्ण की आराधना का हठ,  कृष्ण द्वारा गुरु ऋषभ व सहस्र रूप धारण करके दर्शन देना ),  कथासरित्    ५.३.६५  ( ऋषभ पर्वत पर चर्तुदशी को शिव पूजा के लिए विद्याधरों के आगमन का कथन ),  ८.७.१६५,    ८.७.२००  ( ऋषभ पर्वत पर सूर्यप्रभ के अभिषेक का वर्णन ),    १५.१.६२  ( ऋषभ नामक देव द्वारा तप से कैलास के दक्षिण व उत्तर पार्श्वों का चक्रवर्तित्व प्राप्त करना ),    १५.२.४३  ( ऋषभ पर्वत पर नरवाहनदत्त राजा के अभिषेक का वर्णन )  Rishabha  Comments on Rishabha


ऋषा ब्रह्माण्ड २.३.७.१७२ ( क्रोधवशा - कन्या, पुलह - पत्नी ), २.३.७.४१३ ( मीना, अमीना आदि ५ कन्याओं की माता, मकर आदि प्रजाओं की उत्पत्ति ), वायु ६९.२९० ( मीना, माता आदि ५ कन्याओं की माता , मकर, ग्राह, शङ्ख आदि प्रजा की उत्पत्ति ) Rishaa


ऋषि कूर्म १.२२.४५ ( ऋषियों के आराध्य देव ब्रह्मा व रुद्र ), गरुड १.५.२५ ( सप्तर्षियों द्वारा दक्ष - पुत्रियों का पत्नी रूप में ग्रहण, पत्नियों के नाम ), १.११६.६ ( एकादशी तिथि को ऋषियों की पूजा ), ३.१०.३०(ऋषि के ८ लक्षण होने का उल्लेख), गर्ग ५.१७.२२ ( कृष्ण विरह पर ऋषि रूपा गोपियों के उद्गार ), नारद १.४३.११४( विद्याभ्यास श्रवण धारण से ऋषियों की तृप्ति का उल्लेख ), १.११४.३४ ( भाद्रपद शुक्ल पञ्चमी को ऋषि पूजा की विधि ), पद्म १.१५.३१७( पुरोधा के ऋषि लोक का स्वामी होने का उल्लेख ), ३.२०.१३ ( ऋषि तीर्थ का माहात्म्य : तृणबिन्दु ऋषि की शाप से मुक्ति ), ब्रह्मवैवर्त्त १.८.२४ ( पुलस्त्य आदि ऋषियों की ब्रह्मा की देह के अङ्गों से उत्पत्ति ), २.५०.३३ ( सुयज्ञ राजा द्वारा ब्राह्मण अतिथि के तिरस्कार पर ऋषियों द्वारा स्व प्रतिक्रिया व्यक्त करना ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.७० ( ऋषियों के पांच प्रकारों का वर्णन ), १.२.३२.८६ ( ऋषि शब्द की निरुक्ति ), १.२.३२.९९ ( तप व सत्य से ऋषिता प्राप्ति करने वाले ऋषियों के नाम ), १.२.३५.८९ ( देवर्षि, ब्रह्मर्षि आदि ऋषियों के लक्षण ), २.३.१ ( ऋषि सर्ग का वर्णन ), भविष्य १.५७.१०( ऋषि के लिए क्षीरौदन बलि का उल्लेख ), १.५७.२०( ऋषियों हेतु ब्रह्मवृक्ष की बलि का उल्लेख ), ३.४.२१.१३ ( कलियुग में कश्यप आदि १६ ऋषियों का कण्व व आर्यावती के पौत्रों के रूप में उत्पन्न होना ), भागवत १२.६.४८ ( वेद संहिता की शाखाओं के प्रवर्तक आचार्यों / ऋषियों के नाम ), मत्स्य ३.५ ( ब्रह्मा के मन से सृष्ट १० ऋषियों मरीचि आदि के नाम ), १४५.८१ ( ऋषि शब्द की निरुक्ति, सत्य, तप आदि से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों के ५ गणों का वर्णन ), १४५.८९( ऋषियों के अव्यक्तात्मा, महात्मा आदि ५ भेद ), १४५.९८ ( मन्त्रकर्त्ता ऋषियों के नाम ), १९३.१३ ( ऋषि तीर्थ का माहात्म्य : शापग्रस्त तृणबिन्दु की मुक्ति ), १९५.६( ब्रह्मा के शुक्र से ऋषियों की पुन: उत्पत्ति का कथन ), मार्कण्डेय ५०.२२ ( भृगु आदि ऋषियों द्वारा दक्ष की ख्याति आदि कन्याओं को पत्नी रूप में ग्रहण करना ), वराह १५२.६२ ( ऋषि तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), वामन २.९ ( वसिष्ठ आदि ऋषियों की भार्याओं के नाम ), ७२.१५ ( सात ऋषि - पत्नियों समाना, नलिनी आदि के नाम ), वायु ७.६८( महर्षि शब्द की निरुक्ति ), ९.१०० ( ब्रह्मा की देह के विभिन्न अङ्गों से ऋषियों की सृष्टि का कथन ), २८.१ ( भृगु आदि ऋषियों के वंश का अनुकीर्तन ), ५९.७९ ( निरुक्ति ), ५९.९१ ( ज्ञान व सत्य से ऋषिता प्राप्त करने वाले मन्त्रकर्ता ऋषियों के नाम ), ६१.८१ ( ब्रह्मर्षि, देवर्षि आदि शब्दों का निरूपण ), १०१.३०/२.३९.३०( ऋषि आदि की भुव: लोक में स्थिति का उल्लेख ), विष्णु १.१०.१ ( भृगु आदि ऋषियों की सन्तानों का वर्णन ), विष्णुधर्मोत्तर १.१११+ ( ब्रह्मा के वीर्य के होम से ऋषियों की उत्पत्ति, ऋषियों के गोत्रों व प्रवरों का अनुकीर्तन ), ३.४२.३ ( ऋषियों के रूप के निर्माण के संदर्भ में ऋषियों को कृष्णाजिन आदि से युक्त करने का कथन ), स्कन्द १.२.५.१०९( ऋषिकल्प : ब्राह्मणों के ८ भेदों में से एक, लक्षण ), ३.२.९.२५ ( यम के अनुरोध पर ऋषियों व ब्राह्मणों के २४ गोत्रों का धर्मारण्य में स्थित होना, २४ गोत्रों, उनके प्रवरों व गुणों का वर्णन ), ५.३.८३.१०६ ( गौ के रोम कूपों में ऋषियों की स्थिति का उल्लेख ), ७.१.२५५ ( ऋषि तीर्थ का माहात्म्य : हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व बिस चोरी पर ऋषियों द्वारा प्रतिक्रिया ), ७.१.३१४ ( ऋषि तीर्थ का माहात्म्य : ऋषियों की पाषाण प्रतिमाओं के रूप में स्थिति ), ७.४.१५.१२ ( ऋषि तीर्थ का माहात्म्य ), महाभारत अनुशासन ९३,९४, १४१.९५( उञ्छ वृत्ति से जीवन निर्वाह करने वाले ऋषियों के धर्म का निरूपण ),१५५, लक्ष्मीनारायण १.३८.५ ( ऋषि आदि शब्दों की निरुक्ति, ब्रह्मा के अङ्गों से ऋषियों की सृष्टि का वर्णन ), १.३८२.१६३(ऋषियों के शिष्यों की संख्या), २.२२५.९३( ऋषियों हेतु स्वर्णकलश दान का उल्लेख ), ३.४५.११०( ऋषियों द्वारा सौहार्द से भगवान् को प्राप्त करने का उल्लेख ), ३.५४.५ ( ऋषि धर्म साधु द्वारा लीलावती खश कन्या को मुक्ति के उपाय का कथन ), द्र. सप्तर्षि Rishi

 Veda study on Rishi/seer



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