Puraanic contexts of words like Uushmaa/heat, Riksha/constellation, Rigveda, Richeeka, Rijeesha/left-over, Rina/debt etc. are given here.

Comments on Rigveda

Veda study on Richeeka

Veda study on Rina/debt


ऋ अग्नि ३४८.३ ( ऋ अक्षर का शब्द व अदिति हेतु प्रयोग ), स्कन्द १.२.६२.२९( क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक )


ऋक्ष ब्रह्म १.११.१०५ ( अजमीढ - पत्नी धूमिनी से ऋक्ष के जन्म का वृत्तान्त, दिवोदास वंश ), १.११.१११ ( विदूरथ - पुत्र, परीक्षित / दिवोदास वंश ), ब्रह्माण्ड २.३.७.१७४ ( पुलह - पत्नी मृगमन्दा से ऋक्षों का जन्म ), २.३.७.२१० ( शुक व व्याघ्री - पुत्र, विरजा - पति, वाली व सुग्रीव पुत्रों के जन्म का वृत्तान्त ), २.३.७.३१९ ( वानरों की ११ जातियों में से एक ), भागवत ४.१.१७ ( ऋक्ष नामक कुलपर्वत पर अत्रि ऋषि के तप का वर्णन ), ९.२२.३ ( अजमीढ - पुत्र, संवरण - पिता, दिवोदास वंश ), मत्स्य ५०.१९ ( अजमीढ व धूमिनी - पुत्र, संवरण - पिता, जन्म वृत्तान्त का कथन ), १७३.७ ( तारकासुर - सेनानी मय के रथ के वाहक सहस्र ऋक्षों / रीछों का उल्लेख ), मार्कण्डेय १५.२८ ( ऊनी वस्त्र हरण पर ऋक्ष योनि प्राप्ति का कथन ), लिङ्ग १.२४.१११ ( २४वें द्वापर में व्यास ), वराह ८५.२ ( भारतवर्ष के कुलपर्वतों में से एक ), वायु २३.२०६ ( वही), ९९.२१४ ( अजमीढ - पत्नी धूमिनी से ऋक्ष पुत्र के जन्म का वर्णन ), ९९.२३३ ( देवातिथि - पुत्र, भीमसेन - पिता, परीक्षित वंश ), विष्णु ३.३.१८ ( २४वें द्वापर में व्यास, वाल्मीकि उपनाम ), ४.१९.५७ ९ (पुरञ्जय - पुत्र, हर्यश्व - पिता, पुरु /भरत वंश ), ४.२०.६ ( देवातिथि - पुत्र, भीमसेन - पिता, परीक्षित वंश ), विष्णुधर्मोत्तर १.२४९.५ ( धूम्र का ऋक्षों आदि के अधिपति होने का उल्लेख ), स्कन्द १.२.१३.१७१( शतरुद्रिय प्रसंग में ऋक्षों द्वारा तेजोमय लिङ्ग की भग नाम से अर्चना का उल्लेख ), २.१.१३ (धर्मगुप्त राजपुत्र द्वारा ऋक्ष रूप धारी ध्यानकाष्ठ ऋषि को वृक्ष से नीचे गिराने के प्रयत्न की कथा ), ३.१.३२ ( वही), ४.१.४५.३६ (ऋक्षाक्षी : ६४ योगिनियों में से एक ), हरिवंश १.३२.४७ (धूमिनी से ऋक्ष के जन्म का वृत्तान्त ), योगवासिष्ठ १.१८.३५ ( इन्द्रियों / अक्षों की ऋक्ष से उपमा ), लक्ष्मीनारायण १.४०२.२२ ( धर्मगुप्त राजपुत्र द्वारा ऋक्ष से विश्वासघात की कथा ), १.५५६.१७ ( ऋक्ष पर्वत से निकलने वाली नदियों के नाम ), १.५५६.७७ ( राजा पुरूरवा द्वारा पितरों के उद्धार हेतु नर्मदा नदी का ऋक्ष पर्वत पर अवतरण कराने का वृत्तान्त ), १.५५७.७ ( अयोध्यापति मनु द्वारा ऋक्ष पर्वत पर अश्वमेध यज्ञ के अनुष्ठान का वर्णन ), कथासरित् १.५.८० ( हिरण्यगुप्त द्वारा वृक्ष पर ऋक्ष से विश्वासघात की कथा ), ४.३.४६ ( सिद्धविक्रम द्वारा पात्र में पत्नी के पूर्वजन्म के ऋक्षी रूप के दर्शन करना ) द्र. नक्षत्र Riksha


ऋक्ष- लक्ष्मीनारायण १.८३.२८( ऋक्षाक्षी : ६४ योगिनियों में से एक ), १.८३.३०( ऋक्षकेशी : ६४ योगिनियों में से एक )


ऋक्षरजा ब्रह्माण्ड २.३.१.५८ ( ब्रह्मा के नेत्र संचार से ऋक्षरजा की उत्पत्ति का कथन ), वा.रामायण ५.६३.५ ( वाली व सुग्रीव के पिता का नाम )


ऋक्षराज ब्रह्माण्ड २.३.७१.३५ ( जाम्बवान ऋक्ष की उपाधि, स्यमन्तक मणि का प्रसंग )


ऋक्षवान ब्रह्माण्ड १.२.१६.३२ ( भारतवर्ष के ७ कुल पर्वतों में से एक, ऋक्षवान पर्वत से उद्भूत नदियों के नाम ), २.३.७०.३२ ( राजा ज्यामघ की ऋक्षवान पर्वत पर स्थिति का कथन ), २.३.७१.३९ ( कृष्ण द्वारा ऋक्षवान पर्वत पर प्रसेनजित् का अन्वेषण, स्यमन्तक मणि प्रसंग ), मत्स्य ४४.३२ ( राजा ज्यामघ का भिक्षुक रूप में ऋक्षवान पर्वत पर वास का कथन ), ११४.१७, ११४.२६ ( भारतवर्ष के ७ कुल पर्वतों में से एक, ऋक्षवान पर्वत से उद्भूत नदियों के नाम ),महाभारत शान्ति ४९.७५, वायु ४५.१०१ ( ऋक्ष पर्वत से उद्भूत नदियों के नाम ), विष्णु २.३.३ ( वही), स्कन्द ५.३.४.४८ ( ऋक्ष पाद से प्रसूत शोण आदि नदियों के नाम ) Rikshavaan


ऋक्षशृङ्ग स्कन्द ५.३.५३ ( दीर्घतपा - पुत्र ऋक्षशृङ्ग की चित्रसेना द्वारा हत्या, दीर्घतपा परिवार के मरण आदि का वर्णन )


ऋग्जिह्व भविष्य १.१३९.४६ ( सुजिह्वा ऋषि की पुत्री निक्षुभा व सूर्य से ऋग्जिह्व ऋषि के जन्म की कथा, अग्नि द्वारा ऋग्जिह्व को पतित होने का शाप, सूर्य द्वारा वरदान )


ऋग्वेद अग्नि १४६.१६( ऋग्वेदा : वैष्णवी कुल में उत्पन्न देवियों में से एक ), भविष्य ३.२.३३.२३( व्याधकर्मा द्वारा अन्नपूर्णा देवी से ऋग्विद्या प्राप्ति का वृत्तान्त ), शिव ५.४२.११( भारद्वाज के ७ पुत्रों के जन्मान्तर में द्विज बनने पर पाञ्चाल नामक पुत्र के ऋग्वेदी/बह्-वृच बनने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.२९०.२ ( बालकृष्ण व लक्ष्मी के विवाह में ऋग्वेद द्वारा आने वाले महीमानों का पूर्व कथन करना ) द्र. वेद Rigveda

Comments on Rigveda

ऋचा पद्म ५.७३.३२( गोपियों के श्रुति व गोप - कन्याओं के ऋचा होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.३३.३६( ऋचा के लक्षण ), मार्कण्डेय १०२.७/९९.७( ऋचाओं के रजोगुणी, यजुओं के सतोगुणी आदि होने का कथन ), वायु ६६.७८ ( ऋचाओं की प्रत्यङ्गिरस से उत्पत्ति ? ) , विष्णु १.५.५३ ( ब्रह्मा के प्रथम मुख से ऋचा की उत्पत्ति का कथन ), १.१५.१३६ ( ऋचाओं की प्रत्यङ्गिरस से उत्पत्ति ? ), शिव ५.१३.१ ( एक ऋचा के पठन का फल वन में तप के बराबर होने का कथन ), स्कन्द ४.१.३१.२४( ऋचा द्वारा शिव स्तुति का कथन ), ५.३.५०.५ ( ऋचा से रहित हवि देने पर फल प्राप्ति न होने का उल्लेख ), हरिवंश १.३.६५ ( वही), महाभारत वन ३१३.५४ ( ऋचा द्वारा एकमात्र यज्ञ के वरण का उल्लेख : यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ) Richaa

Vedic contexts on Richaa


ऋची ब्रह्माण्ड २.३.१.९४( नहुष - पुत्री, अप्रवान - पत्नी, और्व - माता ), वायु ९९.१७९/२.३७.१७४( अणुह - पत्नी, शुक - पुत्री, ब्रह्मदत्त - माता )


ऋचीक ब्रह्म १.८.२९ ( काव्य - पुत्र, सत्यवती से विवाह, सत्यवती को पुत्रार्थ चरु प्रदान करने की कथा ), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९५ ( स्वायम्भुव मन्वन्तर में देवों के सोमपायी दीप्तिमान गण में से एक ), २.३.१.९५ ( और्व के १०० पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र, जमदग्नि - पिता ), २.३.२१.२१ ( परशुराम द्वारा स्व - पितामह ऋचीक व सत्यवती के दर्शन करना ), २.३.६६.३७ ( ऋचीक द्वारा गाधि से सत्यवती की प्राप्ति, सत्यवती को पुत्रार्थ प्रदत्त चरु के विपर्यास की कथा, पुत्र शुन:शेप का विश्वामित्र - पुत्र बनना ), भागवत ९.१५.५ ( गाधि - कन्या सत्यवती की प्राप्ति हेतु ऋचीक द्वारा गाधि को १००० श्याम कर्ण अश्वों को शुल्क रूप में देना, चरु विपर्यास से जमदग्नि व विश्वामित्र के जन्म की कथा ), लिङ्ग १.२४.१९ ( द्वितीय द्वापर में सुतार मुनि के शिष्य ), वायु २३.१८३ ( १८ वें द्वापर में शिखण्डी नामक हरि अवतार के ३ पुत्रों में से एक ), ६५.९३( और्व - पुत्र, सत्यवती - पति, जमदग्नि - पिता ), ९१.६६ ( चरु विपर्यास का प्रसंग ), विष्णु ४.७.१३ ( अश्व शुल्क के बदले सत्यवती से विवाह व चरु विपर्यास की कथा ), विष्णुधर्मोत्तर १.३३ ( और्व /ऋचीक द्वारा सत्यवती को पुत्रार्थ चरु देना, चरु का विपर्यय होने से जमदग्नि व विश्वामित्र का जन्म ), शिव ५.३४.४४ ( दशम मन्वन्तर में दक्षसावर्णि मनु के ९ पुत्रों में से एक ), स्कन्द ६.१६५+ ( गाधि - कन्या सत्यवती की प्राप्ति हेतु ऋचीक द्वारा गाधि को १००० श्याम कर्ण अश्वों को शुल्क रूप में देना, चरु विपर्यास से जमदग्नि व विश्वामित्र के जन्म की कथा ), हरिवंश १.२७.१७ ( और्व / ऋचीक द्वारा सत्यवती को पुत्रार्थ चरु देना, चरु का विपर्यय होने से जमदग्नि व विश्वामित्र का जन्म ), वा.रामायण १.६१.११ ( ऋचीक द्वारा अम्बरीष से गौ शुल्क के बदले मध्यम पुत्र शुन:शेप का यज्ञ में पशुबलि हेतु विक्रय ), १.६२ ( विश्वामित्र द्वारा अम्बरीष के यज्ञ में ऋचीक - पुत्र शुन:शेप की रक्षा ), लक्ष्मीनारायण १.१७४.१८० ( दक्ष यज्ञ से बहिर्गमन करने वाले शैव ऋषियों में से एक ), १.५०६ ( ऋचीक द्वारा गाधि - कन्या सत्यवती को प्राप्त करने व सत्यवती को चरु प्रदान का उद्योग ) Richeeka

Veda study on Richeeka


ऋचेयु ब्रह्म १.११.६, १.११.५१ ( रौद्राश्व - पुत्र, ज्वलना - पति, मतिनार - पिता, वंश वर्णन ), हरिवंश १.३२.१ ( वही)


ऋजीष ब्रह्माण्ड १.२.३५.१२१ ( १८वें द्वापर में व्यास का नाम )


ऋजु गरुड ३.१६.३४(योग में ऋजुता व वक्रता का कथन)


ऋण अग्नि २११.११(४ प्रकार के ऋणों दैवत्य, भौत्य?, पैत्र व मानुष का उल्लेख), २१४.१६( संवत्सर? में कास के ऋण व नि:श्वास के धन होने का उल्लेख ), २५३.१३, २५४.१ ( ऋण सम्बन्धी व्यवहार का विचार ), गरुड १.४९.१०( तीन ऋणों का अपाकरण करके मोक्ष की ओर उन्मुख होने का निर्देश ), १.११५.४६( ऋण शेष आदि के वर्धित होते रहने का कथन ), पद्म २.१२.१ ९ ऋण दाता का पुत्र, भ्राता, मित्र आदि के रूप में जन्म लेकर धन प्राप्ति का वर्णन ), ३.४४.२१( प्रयाग में ऋणप्रमोचन तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ब्रह्मवैवर्त्त २.६.९९ ( ऋणग्रस्त मनुष्य का विष्णु भक्त के दर्शन करके पवित्र होने का कथन ), भविष्य १.१८४.४३ ( ऋण की परिभाषा : प्रतिज्ञा को क्रियान्वित न करना ), भागवत १०.८४.३९( २ ऋणों से उऋण वसुदेव द्वारा देवऋण से उऋण होने के लिए यज्ञ का अनुष्ठान ), मत्स्य १९८.१९ (ऋणवान् :विश्वामित्र वंश के एक ऋषि ), विष्णुधर्मोत्तर २.९५.२( तीन ऋणों तथा उनसे उऋण होने के उपाय का कथन ), २.१३१.३( बिना ऋणत्रय से उऋण हुए मोक्ष की इच्छा का निषेध ), ३.३३१ ( ऋण सम्बन्धी व्यवहार का विचार ), शिव २.२.१३.३५( तीन ऋणों का अपाकरण किए बिना पुत्रों को मोक्ष की ओर प्रवृत्त करने पर दक्ष द्वारा नारद को शाप ), स्कन्द ३.१.३०.१३०(ऋण मोक्ष के रूप में सेतुमूल, धनुषकोटि व गन्धमादन का उल्लेख), ४.१.४०.१२१ ( ऋण की परिभाषा ;प्रतिज्ञा को क्रियान्वित न करना ), महाभारत आदि ११९.१६( पाण्डु द्वारा अपत्यहीन होने के संदर्भ में ४ ऋणों का कथन ), २२८.११( मन्दपाल ऋषि के आख्यान के संदर्भ में मन्दपाल द्वारा पुत्रोत्पत्ति न किए जाने से तीसरे ऋण से उऋण न होने का कथन ), वन ८३.९८( कुरुक्षेत्र में किंदत्त कूप पर तिलप्रस्थ दान से ऋणों से मुक्त होने का उल्लेख ), उद्योग ५९.२२( द्रौपदी द्वारा कृष्ण को आर्तभाव से पुकारने को कृष्ण द्वारा स्वयं के ऊपर ऋण की संज्ञा ), शान्ति १४०.५८( ऋणशेष या वर्धमान ऋण को समाप्त करने का निर्देश ), १९९.८५( काम व क्रोध रूपी विकृत व विरूप ब्राह्मणों में ऋण पर विवाद का वर्णन ), २९२.९( ५ प्रकार के ऋणों के नाम व उनसे उदृण होने के उपायों का कथन ), अनुशासन ३७.१७( देवादि ५ ऋणों के नाम ) द्र. दशार्ण Rina

Veda study on Rina/debt

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